सोनल मानसिंह का जीवन नई आशाओं का संदेश हैः उस्ताद अमजद अली खान

नई दिल्ली : सेंटर फॉर इंडियन क्लासिकल डांसेज” के कलाकारों द्वारा मनभावन प्रस्तुतियों के साथ दो दिवसीय कार्यक्रम “दीक्षा: गुरु शिष्य परंपरा” का समापन हो गया। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के स्वायत्त संस्थान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और “सेंटर फॉर इंडियन क्लासिकल डांसेज” द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम इस बार प्रख्यात नृत्यांगना, सांस्कृतिक विदुषी, पद्म विभूषण व राज्यसभा सांसद डॉ. सोनल मानसिंह को समर्पित था।
कार्यक्रम के दूसरे दिन के भी पहले सत्र में पैनल चर्चा रखी गई थी, जिसमें प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों और डॉ. सोनल मानसिंह के शिष्यों ने भाग लिया। शाम के सत्र में मुख्य अतिथि थे अतिथि उस्ताद अमजद अली खान। इस अवसर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय की भी गरिमामय उपस्थिति रही।

दूसरे दिन के पहले सत्र की वार्ता का प्रारम्भ डॉ. सोनल मानसिंह के संबोधन से हुआ। इस सत्र में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सचिदानंद जोशी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। डॉ. सोनल मानसिंह ने कहा कि हम अपने अंदर की आवाज को अनसुना करते हैं। हमें तिल भर आवाज अपने अंदर रखनी होगी, जहां आपकी आत्मा बोल सके, आप अपनी अंदर की आवाज सुन सकें। इसके बाद आपको अच्छे अवसर मिलेंगे।

डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि कला को सीखने के लिए बच्चों को संस्थानों में जाना होगा, जिससे वह सीख सकें। आजकल ऑनलाइन शिक्षा का चलन बढ़ा है। उन्होंने कहा कि गुरु के छूने से पत्थर हीरा बन जाता है लेकिन ऑनलाइन शिक्षा से हीरा नहीं गढ़ा जा सकता। उन्होंने कहा, “हमारे इस कार्यक्रम का उद्देश्य यह है कि युवा इस कार्यक्रम से जुड़कर कुछ सीख सकें।” उन्होंने यह भी कहा कि डॉ. सोनल मानसिंह कई भाषाएं जानती हैं और वह जिस भाषा में बोलती हैं, उससे अच्छी तरह वाकिफ होती हैं और सही समय पर चीजों को याद कर लेती हैं। डॉ. जोशी ने आगे कहा कि हमें यह समझने की जरूरत है कि सोनल जी देवी नहीं हैं, वह हमीं में से एक हैं, इसलिए हमें हमेशा उनके जैसा बनने का प्रयास करना चाहिए।

वार्ता में सुजाता प्रसाद और प्रो. (डॉ.) पारुल शाह ने डॉ. सोनल मानसिंह के साथ लंबे समय के जुड़ाव पर बात की। सुजाता प्रसाद ने कुछ अनुभवों को याद किया और कहा “ए लाइफ लाइक नो अदर” एक ऐसी किताब है, जो एक छोटी-सी किताब के रूप में शुरू हुई थी लेकिन जो सामने आई, वह उनके जीवन पर एक किताब थी। यतीन्द्र मिश्र ने डॉ. सोनल मानसिंह पर एक पुस्तक “देवप्रिया” लिखी है। मिश्र ने पुस्तक लिखने के संदर्भ में कहा कि “देवप्रिया” पुस्तक लिखते समय उन्होंने शोध करना और पढ़ना सीखा। इनके अलावा, इस सत्र में प्रमोद कोहली, मीरा कृष्णा, शांतनु चक्रवर्ती, रेवती रामचंद्रन, वनश्री राव और डॉ. नीना प्रसाद ने भी डॉ. सोनल मानसिंह की जीवन यात्रा पर विचार व्यक्त किए।