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मस्ती और औघड़पन बनारस की पहचान : डॉ. सच्चिदानंद जोशी

वाराणसी : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की नवीन श्रृंखला “प्रस्तुति आखर” में डॉ. सच्चिदानंद जोशी की पुस्तक ‘बनारस के घाट’ पर चर्चा हुई और डॉ. जोशी ने इस पुस्तक में शामिल कुछ अन्य कविताओं का पाठ भी किया। इस पुस्तक के लिए शोध कला केंद्र के ‘कल्चरल इन्फॉर्मेटिक्स’ विभाग के निदेशक डॉ. प्रतापानंद झा ने किया हैं।

‘मस्ती और औघड़पन बनारस की पहचान’

इस मौके पर आईजीएनसीए (IGNCA) के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि बनारस विश्व का प्राचीनतम शहर है। यह शहर अपनी ओर खींचता है। आपको बांधे रखता है। उन्होंने कहा कि यहां की मस्ती, औघड़पन, ठाठ आपको अपने पास बुलाते हैं, अपने पास रोके रखते हैं। उन्होंने बनारस से जुड़े कुछ रोचक संस्मरण भी सुनाए।

उन्होंने कहा कि “नाव में बैठकर अस्सी घाट से दशाश्वमेध घाट तक की यात्रा करते हुए घाटों को देखकर मेरे मन में जो विचार पैदा हुए, उन्हें मैंने इन कविताओं में पिरोया है।” उन्होंने हरिश्चंद्र घाट, चेत सिंह घाट, मणिकर्णिका घाट पर अपनी कविताओं का पाठ किया। इसके अलावा, बनारस के सभी घाटों पर लिखी अपनी एक कविता भी उपस्थित श्रोताओं को सुनाई।

इस तरह किताब हुई तैयार

किताब के लेखन में बेहद अहम भूमिका निभाने वाले डॉ.प्रतापानंद झा ने कहा कि फ्रांस के राष्ट्रपति के भारत दौरे के समय बनारस घाट के ऊपर एक जानकारी मांगी गई थी। इसके बाद ही इस किताब को तैयार कराया गया। इसमें सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी जी द्वारा लिखित कविताओं को संकलित किया गया है।

इस मौके पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की डायरेक्टर डॉ. प्रियंका मिश्रा ने कहा कि ऐसे कार्यक्रम होने जरूरी है, जिसे हम अच्छी किताबों पर चर्चा कर सकें। उन्होंने कहा कि हमारी कोशिशों को पंख लग रहे हैं और हम नई ऊंचाइयों की ओर बढ़ रहे हैं। इसके अलावा कला केंद्र में असिस्टेंट प्रोफेसर सुमित डे ने भी बनारस के बारे में अपने विचार रखे। कार्यक्रम के अंत में श्रोताओं और कला केंद्र के लोगों ने भी बनारस से जुड़े अपने रोचक अनुभव साझा किए।

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