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आरिफ मोहम्मद खान का बड़ा बयान, कहा : भारत की समृद्धि बन गई उसकी परेशानी का कारण

NEW DELHI : “भारत निश्चित तौर एक विकसित देश था। भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। भारत ने सबको आकर्षित किया। कई पक्षियों की खूबसूरती उनकी परेशानी का कारण बन जाती है। भारत के साथ भी यही हुआ।” ये बातें कहीं केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने। वह इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और बहुभाषी न्यूज एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार द्वारा आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम “दीपोत्सवः पंच प्रण” के दूसरे दिन “विकसित भारत” विषय पर बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि भारत की ओर आ’क्रांता आए, व्यापारी आए, विद्यार्थी आए क्योंकि यहां संपदा थी, समृद्धि थी ज्ञान था। हमारा प’तन हुआ क्योंकि हमने अपने ज्ञान को साझा करने के स्वभाव को छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि भारत में ‘कर्म’ के सिद्धांत की बहुत महत्ता है। भारतीय सभ्यता में देवता भी ‘कर्म’ के परिणामों से बच नहीं सकते हैं। हमने अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया और इस प्रकार हम पीछे की ओर चले गए।

“दीपोत्सवः पंच प्रण” के दूसरे दिन पहले सत्र में बोलते हुए प्रसिद्ध रामकथा वाचक अतुल कृष्ण भारद्वाज ने कहा कि एकता एकात्मता को जानना है, तो उसका सूत्र है सत्य को जानना होगा। परमात्मा ने दुनिया में जो सबसे सुंदर देश बनाया है, वह है भारत। भारतीय ऋषियों ने सबको प्रेम करना सिखाया। हम सब एक हैं। हम सबके अंदर परमात्मा निवास करते हैं। सबका कुशल मंगल होगा, तभी भारत विकसित होगा। भारत अपनी विद्याओं के आधार पर विकसित होगा।

इस सत्र में अपने अध्यक्षीय भाषण में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि भारत का अर्थ “इंडिया दैट इज भारत” नहीं है, बल्कि भारत वह है, जो 5000 सालों से अपनी परम्परा को अक्षुण्ण बनाए हुए है। केवल शहर बना देना भारत नहीं है, गांवों की ओर लौटना भारत है। अपनी मिट्टी की ओर लौटना होगा और विकास की अवधारणा को अपनी संस्कृति के अनुसार परिभाषित करना होगा। इस सत्र में धन्यवाद ज्ञापन हिन्दुस्थान समाचार के अध्यक्ष अरविंद भालचंद्र मार्डीकर ने किया।

दिन के दूसरे सत्र में “संस्कृति और धरोहर” विषय पर विचार व्यक्त करते हुए महामंडलेश्वर अनंत मां योग योगेश्वरी यति जी ने कहा कि संस्कार ही संस्कृति का आधार है। भारतीय संस्कृति में सत्य अनुभूति का विषय है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अपनी संस्कृति में हमें गाय, योग, आयुर्वेद आदि को महत्त्व देना होगा। इस सत्र की अध्यक्षता अरविंद भालचंद्र मार्डीकर ने की। दिन के तीसरे सत्र में “नागरिकों में कर्त्त्वय भावना” विषय पर चिन्मय मिशन ट्रस्ट, नई दिल्ली के आचार्य प्रकाशानंद गिरी ने बीज वक्तव्य दिया।

आचार्य प्रकाशानन्द ने सतयुग से कलयुग तक के बदलते मानदंड और प्राथमिकताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शासकों पर जिस तरह का प्रभाव होता है, समाज में भी वैसा ही लक्षित होता है। इसकी अध्यक्षता जम्मू-कश्मीर कलस्टर यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. बेचन लाल जायसवाल ने की। प्रो. जायसवाल ने इसे विडम्बना ही बताया कि आजादी के 75 साल बाद भी देश के प्रधानमंत्री को नागरिकों को कर्तव्य भाव का अहसास कराना पड़ रहा है। इस सत्र में आचार्य प्रकाशानन्द गिरी ने एक लघु फिल्म के जरिए सहज ही दैनन्दिन में आने वाले कर्तव्यों की भी प्रस्तुति की।

सायंकालीन सत्र में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में शास्त्रीय गायिका सुनंदा शर्मा ने अपने गायन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। बाउल साधक मधुसुदन बाउल अपनी प्रस्तुति से एक दिव्य वातावरण का निर्माण कर दिया। इसी सत्र में रंगमेल द्वारा प्रस्तुत दीप नृत्य वातावरण को प्रकाशित कर दिया। प्रथम सत्र का संचालन युगवार्ता के संपादक संजीव कुमार ने किया।

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