Akhil Bhartiya Jansangh : अखिल भारतीय जनसंघ ने मनायी प्रो. बलराज मधोक की 103वीं जयंती, विद्वानों ने की शिरकत
Akhil Bhartiya Jansangh : जनसंघ नेता प्रो. बलराज मधोक की 103वीं जयंती पर अखिल भारतीय जनसंघ ने कार्यक्रम आयोजित किया।
Akhil Bhartiya Jansangh : पूर्व लोकसभा सदस्य और जनसंघ नेता प्रो. बलराज मधोक की 103वीं जयंती पर अखिल भारतीय जनसंघ (Akhil Bhartiya Jansangh) की भोजपुरी जिला इकाई की ओर से शहर के फ्रेंड्स कॉलोनी में कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता अधिवक्ता सत्येन्द्र नारायण सिंह ने की।
मनायी गई 103वीं जयंती
मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए अखिल भारतीय जनसंघ (Akhil Bhartiya Jansangh) के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य डॉ. भारतभूषण पाण्डेय ने कहा कि प्रो. बलराज मधोक ने स्वतंत्र भारत की राजनीति को अपेक्षित दिशा और वैचारिक आधार प्रदान किया है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पं. दीनदयाल उपाध्याय के अभिन्न सहयोगी के रूप में उन्होंने भारतीय जनसंघ (Akhil Bhartiya Jansangh) की स्थापना और सशक्त संगठन निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कांग्रेस की आंधी में जनसंघ (Akhil Bhartiya Jansangh) को चुनावी सफलता के लायक बनाया और देश में नेहरुवादी राजनीति का जनसंघ के द्वारा राष्ट्रवादी – यथार्थवादी विकल्प प्रदान किया। एक स्पष्टवादी सांसद,विचारक, लेखक,विद्वान और विश्वसनीय राजनेता के रूप में पक्ष – विपक्ष के सभी लोग उनका आदर करते थे।
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विद्वानों ने विचार किए व्यक्त
आचार्य पाण्डेय (Akhil Bhartiya Jansangh) ने कहा कि जीवन में बलराज मधोक जी ने कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया और अवसरवाद से दूर रहे। उन्होंने कहा कि देश की अस्सी प्रतिशत समस्याओं का मूल कारण अवसरवादी राजनीति है। जनसंघ देश में ग्राम स्तर पर सशक्त संगठन बनाने और सत्ता – सुविधा – सफलता से निरपेक्ष समाज की सेवा करने वाले कार्यकर्ताओं की टोली विकसित करने के कार्य में लगा हुआ है। देश में 25 लोकसभा क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं की टोली प्रो. बलराज मधोक के आदर्शों के अनुरूप राजनीति को शुचिता, सिद्धांतनिष्ठा और जनसरोकार – जनसेवा का प्रभावी माध्यम बनाने में लगी है।
स्वागत भाषण करते हुए डॉ. सत्यनारायण उपाध्याय ने कहा कि जनसंघ (Akhil Bhartiya Jansangh) और बलराज मधोक जी को दरकिनार कर भारतीय राजनीति की कल्पना भी नहीं की जा सकती। संचालन मधेश्वर नाथ पाण्डेय और धन्यवाद ज्ञापन विश्वनाथ दूबे ने किया। वक्ताओं में वीरेंद्र प्रसाद श्रीवास्तव, अखिलेश्वर नाथ तिवारी, महेंद्र पाण्डेय, विश्वंभर सिंह, नर्वदेश्वर उपाध्याय, अमरनाथ तिवारी आदि प्रमुख थे।