नामोपासक थे कबीरदास जी – आचार्य भारतभूषण
आरा : कबीरदास जी की जयंती के अवसर पर श्रीसनातन शक्तिपीठ संस्थानम् के तत्त्वावधान में फ्रेण्ड्स कॉलोनी में कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आचार्य डॉ. भारतभूषण पाण्डेय ने कहा कि कबीरदास जी वैदिक आचार्य श्री रामानन्दाचार्य जी महाराज के प्रमुख शिष्य हैं। उन्होंने श्रीराम नाम की उपासना की और उसी का प्रचार किया।
आचार्य ने कहा कि नाभा दास जी के शिष्य जगन्नाथ स्वामी ने अपने दोहा में आत्मज्ञानी भगवान शुकदेव का अवतार कबीरदास जी को बताया है-बालमीक तुलसी भए सुकमुनि भए कबीर। राजा जनक नानक भए उद्धव सूर शरीर।। अर्थात् जब मुगल काल में राष्ट्र, धर्म और संस्कृति पर संकट के बादल मंडराने लगे थे तब महर्षि वाल्मीकि गोस्वामी तुलसीदास, भगवान् शुकदेव कबीरदास, राजा जनक नानकदेव और उद्धव जी सूरदास के रूप में प्रकट हुए तथा समाज और साहित्य में भक्ति की अनुपम धारा बहाई।
हिन्दी साहित्य में इसे भक्तिकाल तथा साहित्य का स्वर्णयुग कहा जाता है। कबीरदास जी निर्गुण धारा के नामोपासक हैं जिन्होंने श्रीरामानन्दाचार्य जी से श्रीराम नाम मंत्र प्राप्त कर समाज को दिव्य चेतना तथा दिव्य सत्ता की अनुभूति प्रदान की है। समाज की एकता तथा साहित्य में भक्ति की भूमिका के लिए कबीरदास जी का अविस्मरणीय योगदान है।
कार्यक्रम में स्वागत भाषण कुमार सौरभ, संचालन मधेश्वर नाथ पाण्डेय और धन्यवाद ज्ञापन सत्येन्द्र नारायण सिंह ने किया। इस अवसर पर डॉ. सत्यनारायण उपाध्याय, विश्वनाथ दूबे, नर्मदेश्वर उपाध्याय, महेन्द्र पाण्डेय, अमरनाथ तिवारी, निलेश कुमार मिश्र, ब्रजकिशोर पाण्डेय, सुरेन्द्र मिश्र, अखिलेश्वर नाथ तिवारी, सियाराम दूबे, उमेश सिंह कुशवाहा, ध्रुव कुमार सिंह आदि प्रमुख सदस्य उपस्थित थे।